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गीत – न इतरा कृष्ण पर गोपी किशन बलहीन हो जाते

kavita
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गीत

न इतरा कृष्ण पर गोपी किशन बलहीन हो जाते |
समय बलवान होता है मुरारी दीन हो जाते ||

यवन से हार कर रण में किशन रण छोड़ कहलाये |
धनन्जय गोपियाँ लेकर चले थे कृष्ण बिलखाये ||
लुटेरे कोल भीलों ने वो सुमुखी गोपियाँ लूटीं |
हुआ गांडीव बुजदिल था परंतप छीन हो जाते ||

समय जब साथ देता है सियासुत जीतते रण में |
पराजित वंश हो जाता उलझते रामजी प्रण में ||
समय सिद्धांत पक्का है तपस्या व्यर्थ ना होती |
वही लवकुश अवध के तख़्त पर आसीन हो जाते ||

कोई अभिशाप बन छाया कभी जब साथ में हो ले |
सितमगर का सितम मगरूर हो सर चढ़ के जब बोले ||
समय करवट बदलता है तो कट अभिशाप जाता है |
मुकद्दर के कोरे पन्ने सभी रंगीन हो जाते ||

समय का है कहर ऐसा जो सब पर ही गरजता है |
समा कर आँख में जैसे कि बादल बन बरसता है ||
समय को दोष कैसे दें समय समभावकारी है |
समय की मार से राघव किशन ग़मगीन हो जाते ||

आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
9412224548

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