kavita
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न मै बकवास करता हूँ ये कविशायर की वानी है |
मेरे आँखों में आंशू हैं नही कोई ये पानी है ||
तवायफ़ से मुझे बदतर बना डाला प्रिये तुमने |
गजल लिखते नहीं थे हम न पेशा खानदानी है ||
नहीं कहना चाहता हूँ मगर कविता कहे देती |
किया बर्बाद जो मुझको तुम्हे कीमत चुकानी है ||
रुलाते क्यों मुझे अहसास ये तो बस खुदा जाने |
रवानी हो गयी उल्टी कोई दो जान जानी है ||
मुहब्बत है न केवल ये कोई उलझी कहानी है |
सुलझ ऐसे न पाएगी कहानी आसमानी है ||
बनीं गम गीत की दानी मिटा हूँ मै प्रिये तुमसे |
नहीं सीखी गजल हमने तुम्हारी ये निशानी है ||
तुम्हारी ये जफ़ा शिव को जवानी में मार देगी |
प्रिये तुम बच न पाओगी दुधारी ये रवानी है ||
आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
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