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प्रेम यज्ञ गीत

kavita
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अश्रु के अभिषेक से क्यूँ ?, प्रेम का है देव रूठा |
जिन्दगी आहुति बनी फिर भी हमारा प्रेम झूठा |

कल्पना की बाग़ में केलों के कुछ मंडप बनाये |
पीत केशर लीप करके पुष्प के आसन बिछाये ||
स्वस्तिवाचन गान कर पय सिन्धु से घट भरके लाये |
पल्लवों के कोपलों से फिर कलश को हैं सजाये ||

किन्तु मेरी कार्य शैली का हुआ हर विन्दु झूठा |
हाय कैसे हो गया है प्रेम का पय सिन्धु झूठा ||

मिश्र कुंकुम अक्षतों से एक अभिनव चौक डाली |
रक्तचन्दन पुष्प दूर्वा हल्दि से थाली सजाली ||
न्यास स्तुति ध्यान करके प्रेम की मूर्ती बिठा ली |
षोडशो विधि पूजकर शतवर्ति की थाली उठा ली ||

किन्तु मेरी आरती का अर्चना मनुहार झूठा |
प्रेम मूरत देवता से प्रेम का व्यवहार झूठा ||

हल्दि कुंकुम और कुश अक्षत से है परिधी सजाई |
पंच पूजा ध्यान करके आम्र की समिधा मगाई ||
अर्णिमंथन ध्यान करके कुण्ड में अग्नी जलाई |
बेलगिरि सर्वौषधी केशर से सामग्री बनाई ||

किन्तु मेरी आहुती के ग्रास का सम्मान झूठा |
प्रेम मूरत देवता के यज्ञ का विधि ज्ञान झूठा ||

हार करके यज्ञ से तप त्याग का संसार भाया |
साधना उपवास करके स्वस्थ तन को भी सुखाया ||
योग प्राणायाम से परब्रह्म का सानिध्य पाया |
वेदना स्त्रोत सुन परब्रह्म भी कुछ तिलमिलाया ||

राम भक्ती छोड़करके तू बना दीवाना झूठा |
लंपटों ने तेरे जीवन का किया हर ताज झूठा ||

आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी

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