kavita
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गिडगिडाना है नहीं अब जोर की हुंकार हो |
याचना निष्फल हुई तलवार में अब धार हो ||
राजनीती बन चुकी है दो मुहों की सर्पिणी |
दूध देना व्यर्थ है अब शेष की फुफकार हो ||
आज कल जनता जनार्दन पर लाठियां चल रहीं |
चक्र धारी तुम बनों मृतप्राय अब गद्दार हो ||
हुक्मरानों का हुआ है रक्त दूषित अब यहाँ |
वो निकलना है जरूरी तीर आरम्पार हो ||
त्याग दो अब वस्त्र भगवा वीरता ललकार हो |
अब सियासी पर्वतो पर वज्र जैसी मार हो ||
मुफ्लिसी की मार से कंगाल अब कंकाल है |
जी रहे है लाश बन लाचार पर ना वार हो ||
रक्त रंजित मेदिनी हो जायेगी सुन बेरहम |
कह रहा शिव छोड़ गद्दी तेरा भी उद्धार हो ||
आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
9412224548
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