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गजल
न जीने की ख़ुशी मुझको न मरने का है गम कोई |
न कोई मेरा साथी है न है हमदम सनम कोई ||
खुदा तू ऐसे बन्दों को जमीं पर भेजता क्यूँ है ?
मुकद्दर है नहीं कोई न निभ पाया धरम कोई ||
यहाँ जो प्यार करते है उन्हें पागल कहा जाता |
जो पागल ही बना देते वो तुझसे क्या है कम कोई ?
यहाँ पर बेरहम जालिम हँसीनों के है दिल पत्थर |
पिघल सकते नहीं पत्थर भले दे तोड़ दम कोई ||
खुदा तेरा नियम पक्का सभी को न्याय मिलाता है |
वफ़ा को है जफा मिलती ये बदला क्या नियम कोई ?
बना भगवान् पत्थर का मगर वो भी है सुन लेता |
सनम जो फूल से नाजुक नहीं रहमो करम कोई ||
हवा से ही नजारों का यहाँ बनना मुकम्मल है |
सही को भी कहे साजिस ये सच है या भरम कोई ||
जगी है ये गजल या फिर बहर करती बावरा है |
मुझे लगता है दिल टूटा फटा दिल में है बम कोई ||
कलम दिल खून से भरकर लिखीं शिव ने बहुत गजलें |
मेरे महबूब कातिल है मुहब्बत ना रहम कोई ||
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