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देव स्तुतियाँ

kavita
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श्री गणेश स्तुति

गणनाथ गणनायक विनायक भालचंद्र गजाननम |
लम्बोदरम शिवपुत्र गणपति श्री गणेशं ध्यायितम ||
ब्यापक चराचर आदि पूजित वक्रतुंड सुरेश्वरम |
कर दो कृपा शिव दास पर हे श्रेष्ठ देव गणेश्वरम ||

माँ शारदा स्तुति

माँ शारदा तुम जगत जननी ज्ञान की परमेश्वरी |
संगीत पिंगल शास्त्र विद्या योग की योगेश्वरी ||
सुर संत पूजित सर्व वन्दित मातु तुम मातेश्वरी |
मै मूर्ख हूँ कुछ ज्ञान दो मम बुद्धि भ्रम से है भरी ||

माँ दुर्गा स्तुति

दुर्गा भवानी जगत जननी मातु तुम जगदम्ब हो |
संघार करती दानवों का भद्र काली अम्ब हो ||
है भारती भगिनी तुम्हारी तासु तुम अवलंब हो |
रक्षा करो माँ भारती की रंच भी न विलम्ब हो ||

श्री राम चन्द्र स्तुति

श्री राम चन्द्र कृपा करो अब भक्ति मुझको दीजिये |
दुर्बुद्धि हूँ कमबुद्धि सद्बुद्धि मेरी कीजिये ||
अटका हुआ भटका हुआ लटका हुआ संसार में |
झटका हुआ खटका हुआ चटका हुआ हूँ प्यार में ||

श्री शिवस्तुति

श्रीशंकरं गंगाधरं शम्भो सदाशिव ईश्वरं |
करुनाकरं निर्वाणरूपं श्री विभुं परमेश्वरं ||
नागेन्द्र हारं शूल धारं गौरि पति जगदीश्वरं |
करिए कृपा इस दास पर हे राम प्रिय रामेश्वरम ||

श्री हनुमान स्तुति

हनुमान जी तुम जानकी प्रिय राम प्रिय सुख धाम हो |
शिव रूप तुम हो रूद्र तुम हो पवनसुत अभिराम हो ||
तुम दैत्य कुल के हो विनाशक संत सज्जन जन प्रभो |
मै दास हूँ प्रभु आपका अब कर कृपा दो हे विभो ||

श्री शनिदेव स्तुति

सुत सूर्य के तुम हो शनैश्वर मातु छाया आपकी |
हर राशि पर है गति तुम्हारी वर्ष साढ़ेसात की ||
यमराज अग्रज आप हो यमुना बहिन सब जानते |
दंडाधिकारी नवग्रहों में आप को सब मानते ||

शुभ कर्म का फल शुभ सदा शनिदेव देते आप है |
पापी जनों को कष्ट प्रद गोचर दशा अभिशाप है ||
हे भाग्य के स्वामी प्रभो मुझको सफलता दीजिये |
मै दींन हीन मलीन मलीन हूँ मुझको शरण ले लीजिये ||

श्री गुरुदेव स्तुति

गुरुदेव तुम हो ज्ञान के प्रतिमान पूर्ण प्रभाकरं |
तुम ज्ञान दाता मोक्ष दाता बुद्धि शुद्दि दिवाकरं||
बिन आपके उद्धार हो सकता किसी का है नहीं |
जो पूर्ण निष्ठां से समर्पित शिष्य श्रेष्ठ रहे वही ||

माँ की स्तुति

महिमा कहूं क्या मातु की माता तो सब कुछ झेलती |
है जन्म देती पालती हर संकटों से खेलती ||
संतान हो गुणवान औ धनवान माता चाहती |
देखो कपूतों और समझो रो रही है भारती ||

रात्रि स्तुति

आगमन शुभ रात्रि का देदीप्य्दीपित दीपिका |
आकाश में भी सज गयी शुभ तारिका की वीथिका ||
शुभ संत सज्जन वृन्द पालन कर रहे शुभ रीतिका |
श्री राम जी शिव लिख रहा अब छंद है हरिगीतिका ||

आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
9582510029

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