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गजल

kavita
kavita
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बढे भारत की आबादी करो तुम प्यार की शादी |
हमारी कामना ये है कि हो संसार की शादी ||

तुम्ही हो आदि मानव मनु वो लड़की भी है शतरूपा |
मिलाओ श्रृष्टि में अमृत न हो तकरार की शादी ||

कभी गंगा कभी सागर मनुज का वेश धरते है |
बने इतिहास कितने है हुई संभार की शादी ||

बहुत मीठा ये बंधन है बहुत अनुभव कराता है |
मेरे भाई मेरी मानो ये है सुविचार की शादी ||

जरूरत है दो तारों की अगर बिजली जलाना है |
बनीं है लडकियाँ अब फेस कि शादी तार की शादी ||

बताता शिव मेरे भाई सदा न्यूट्रेल ही रहना तुम |
हुए जो फेस है भाई हुई फुफ़कार की शादी ||

आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
नॉएडा -०९४१२२२४५४

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