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गजल

kavita
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दिलरुबा ने चलाई है जिगर पर इस कदर छूरी |
कटा ककड़ी के जैसा दिल दिखाई है नजर पूरी ||

छलकती है दिवानी की जवानी संगमरमर सी |
चमकती है सितारों सी सुधाकर का असर पूरी ||

कवँल जैसे कपोलों की कली कोई है अलबेली |
अधर उसके गुलाबों से परिस्तानी हुनर पूरी ||

भ्रमर से केश उसके मुस्कुराती फुलझरी जैसी |
अदाओ की महारानी मगर मीठी जहर पूरी ||

उसी को नाम क्या दें हम हटी है जो नहीं दिल से |
गजनबी सा कहर उसका सिकंदर की लहर पूरी ||

बिछाती है गुलों को वो मुसाफिर की डगर पर तो |
गुलों में खार रखती है रकीबों का शहर पूरी ||

सितमगर प्यार की वो है दिखाती है जहन्नुम को |
मिटाती इश्क की दुनिया बन चुकी है ग़दर पूरी ||

भुलानें में मुझे उसको लगेगा अब समय कितना ?
कहीं ऐसा न हो जाए निकल जाए उमर पूरी ?

आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
नॉएडा -०९४१२२२४५४८

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