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मै जो गीत गाता

kavita
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मै जो गीत गाता वो उनको न भाता |
मगर क्या करूं ये दिल मुझको रुलाता ||

कहाँ प्रेम वाणी कहाँ प्रार्थना है ?
कहाँ सिद्ध होती जो प्रेम साधना है ?
कहाँ प्रेम रस है कहाँ भावना है ?
मिलन की क्या कोई संभावना है ?
मिले प्रेम मूर्ती ये क्या वासना है ?
या फिर ह्रदय की ये आराधना है ?
कोई तो कहे कैसी ये कल्पना है ?
जीवन है या फिर कोई जल्पना है ?

नहीं जानता हाय क्या ये विधाता ?
मगर क्या करूं ये सब मुझको सताता ?

मै जो गीत गाता वो उनको न भाता |
मगर क्या करूं ये दिल मुझको रुलाता ||

कहाँ प्रेम वन है कहाँ प्रेम सागर ?
कहाँ से दिखेगा वो प्रेम का सुधाकर ?
कहाँ प्रेम घट है कहाँ प्रेम गागर ?
अर्घ्य हो वो कैसा जो खुश हो दिवाकर ?
कहाँ रासलीला कहाँ कृष्ण नागर ?
करे प्रेम भक्ती कहाँ प्रेम चाकर ?
हुआ खुश हो जो प्रेम सरिता नहाकर ?
मुदित हो उठा प्रेम कर प्रेम पाकर ?

नहीं जानता वो कहाँ पर है रहता ?
मगर क्यूँ नहीं कोई मुझसे मिलाता ?

मै जो गीत गाता वो उनको न भाता |
मगर क्या करूं ये दिल मुझको रुलाता ||

कभी वेदना घन मुदित हो गरजते ?
ब्यथित हो नयन अश्रु जल से बरसते ?
कभी ख्वाब कोई लगते है अपने ?
कभी दैव् अभिशाप के देखे सपनें ?
कहीं पर दिखीं आधियां है ग़मों की ?
कहीं पर चमक प्रेम के कुछ क्षणों की ?
दिखीं झाडिया है कहीं वक्रता की ?
बही है नदी कहीं मेरी ब्यथा की ?

कभी तो कोई मुझपर ममता दिखाता ?
राम भक्त तोतों की कथा भी सुनाता ?

मै जो गीत गाता वो उनको न भाता |
मगर क्या करूं ये दिल मुझको रुलाता ||

आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
नॉएडा
०९४१२२२४५४८

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