kavita
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हमसफर है हुआ सित्मगर देख लो ।
हाय बद्तर हुआ नजर भर देख लो ॥
आँख में झाँकने का जो रखते हुनर |
रात को जागने को असर देख लो ||
किस कदर मेरे दिल पर ढहाया कहर ?
नजर क्यूँ मार दी वो नजर देख लो ?
चाह तेरी फली तुम ये ले लो खबर |
उजड तो मैं गया मेरा घर देख लो ||
नाम तेरा यहाँ जुर्म का हमसफ़र |
काम के वास्ते इक शहर देख लो ||
कितना था दूर मैं शायरी से मगर ?
तुमने शायर बनाया हुनर देख लो ||
लुट गयी हर ख़ुशी शिव की है इस कदर |
बन गया पीर का हूँ जहर देख लो ||
आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
नोंएडा -०९५८२५१००२
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