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गजल

kavita
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हमसफर है हुआ सित्मगर  देख लो ।
हाय बद्तर हुआ नजर भर देख लो ॥

आँख में झाँकने का जो रखते हुनर |
रात को जागने को असर देख लो ||

किस कदर मेरे दिल पर ढहाया कहर ?
नजर क्यूँ मार दी वो नजर देख लो ?

चाह तेरी फली तुम ये ले लो खबर |
उजड तो मैं गया मेरा घर देख लो ||

नाम तेरा यहाँ जुर्म का हमसफ़र |
काम के वास्ते इक शहर देख लो ||

कितना था दूर मैं शायरी से मगर ?
तुमने शायर बनाया हुनर देख लो ||

लुट गयी हर ख़ुशी शिव की है इस कदर |
बन गया पीर का हूँ जहर देख लो ||

आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी

नोंएडा -०९५८२५१००२

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